मधुर वाणी बोलने की कला
आज हमलोग बोलने की कला चुटकियों में सीखे पर अपने इस पोस्ट के जरिये नजर डालेंगे | बोलने की कला जीवन जीने की कला का ही एक महत्वपूर्ण पार्ट है | इंसान बोलना तो बचपन में साल डेढ़ साल में ही सिख जाता यही लेकिन क्या बोलना है सिखने में सालो साल लग जाता है | कुछ महत्वपूर्ण तथ्य के जरिये समझने की कोसिस करेंगे, आप इस सम्पूर्ण पोस्ट पर आवस्य ही नजर डालें |
मधुर वचन
दोस्तों इंसानो के जेब में महगे से महगे मोबाइल क्यों न हो पर अगर मधुर वाणी बोलने की कला न हो तो मोबाइल की घंटियां भी नहीं बजती | किसी भी व्यक्ति के जीवन निर्माण के लिए तीन खास विन्दु हैं सोच, नजरिया और वाणी |अगर ये तीनो आपका बेहतर है तो आगे सब बेहतर ही होता रहता है |
ऊँची सोच
अच्छे व्यक्तित्व के निर्माण के लिए ऊंची सोच तथा मधुर वाणी बोलने की कला होना बहुत आवश्यक होता है | योगासन और ताड़ासन करके इंसान अपनी हाइट दो इंच बढ़ा सकता है , कुछ लोग तो अपनी हाइट बढ़ाने के लिए ऊंची हील वाली चप्पल जूतों का भी उपयोग करते है | पर ऊंची सोच रख कर इंसान हिमालय की उचाईयों को भी छू सकता है | दोस्तों चीन में कोई भी पांच फुट से ज्यादा ऊँचा नहीं होता लेकिन ओलम्पिक का खेल हो या व्यापर आगे होते है क्यों ओ चप्पल जूतों से नहीं अपनी ऊँची सोच को बढ़ावा दिया | पांव में परी मोच और नीची सोच व्यक्ति को कभी आगे नहीं बढ़ने देता | पहला ऊँची सोच दूसरा सकारात्मक नजरिया अगर ये दिनों हो तो इंसान निगेटिव से निगेटिव वातावरण में भी पॉजिटिव वातावरण का प्रकाश जला ही लेता है | दुनिया में कितना भी कंकरीली सड़क क्यों न हो लेकिन उसको एक अच्छी जूता पहन कर पार किया जा सकता है पर , पर कोई व्यक्ति कितना भी हैंडसम क्यों न हो पर पांव काटने वाली जूता पहन कर कंकरीली सड़क को पार नहीं कर सकता | तो दोस्तों हमारा नकारात्मक ऐटिटूड हमारा नकारत्मक नजरिया ये ही है हमारा पांव काटने वाली जूता | ऊँची सोच का होना बहुत जरुरी है |
जीवन न बन जाये बला,
उससे पहले सिख लो जीने की कला
एक कहानी:-
एक अतित्त के छोटी सी घटना पर चर्चा करते है | घटना है राजा भोज के समय की | राजा भोज राज सभा से निकल कर अपने रानी के पास गया तो रानी अपने सहेलियों के साथ वार्तालाप कर रही थी | जैसे ही राजा वहा पंहुचा तो अपने रानी से कहा की रानी मै आ गया हु , रानी वार्तालाप में व्यस्त थी , ध्यान नहीं दी | फिर राजा ने कहा की रानी मै आ गया हु , रानी ध्यान नहीं दी तो राजा उनके बिच जा के बोलै रानी मै आ गया तो रानी बोली : ओहो आइये मूर्खराज | राजा चौका की मै कहा महाराज और रानी मुझे कह रही है मूर्खराज जरूर कोई कारन होगा | राजा वापस जब राज सभा में गया तो जो सामने परता उसी को बोलता आइये मूर्खराज | सब चौकने लगा की राजा को आज हो क्या गया है, सबको मूर्खराज बोले जा रहे है | इतने मे महान कवी कालिदास वहाँ आ गए तो उनको भी वैसा ही बोलै की आइये मूर्खराज तो कालिदास जी ने पूछा की महाराज मै मूर्खराज कैसे | मूर्खराज तो वो होते है जो चलते चलते खाते है , जो सड़क पर चलते चलते हसी ठठा करते है , जो अपने किये पर अभिमान करते है , जो अतीत की घटना पर शोक करते है तथा जो व्यक्तो दो लोगो के बिच बात करते समय बिच में टपकता है उसको कहते है , जबकि मै इनमेसे कोई भी नहीं हु तो मै मूर्खराज कैसे हुआ | राजा चौका अब राजा को ज्ञान हो गया की रानी ने राजा को मूर्खराज क्यों कहा | दोस्तों केवल ऊंची पदों पर बैठना ही काफी नहीं है , ये भी ज्ञान होना चाहिए की कब किस समय क्या बोलना है |
एक और कहानी
दो लोग आपस में झगड़ रहे थे तो एक ने बोलै की मै तेरी ३२ तोड़ दूंगा तो दूसरे ने कहा मै तेरी ६४ तो तीसरे ने कहा की ३२ तो समझ गया ये ६४ क्या है तो एक ने कहा की मुझे पता था की तू बीच में टपकेगा इसी लिए मै ६४ बोला |नोट :- दोस्तों बोलना एक कला है , क्या बोलना कब बोलना यही ट्रिक जो इंसान सिख जाता ओ व्यक्ति ऊंचा उठता है | स्कूल में इतिहास भूगोल खगोल सिखाया जाता है लेकिन लेकिन मोटिवेशनल बाते जाननी है तो हमारे ब्लॉग पर विजिट करते रहिये |
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